भीखम मात अभाव, मात गंग कींकर मनै।
सो पखहीण सभाव, सेवट सिटग्यौ सांवरा॥
भावार्थ:- भीष्म की माता का पता नहीं चलता; माता के अभाव में गंगा को उसकी माता क्योंकर मान ली जाय? पक्षहीनों का यह स्वभाव ही होता है। अन्त में भीष्म को भी लज्जित होना पड़ा!