भीखम मात अभाव, मात गंग कींकर मनै।

सो पखहीण सभाव, सेवट सिटग्यौ सांवरा॥

भावार्थ:- भीष्म की माता का पता नहीं चलता; माता के अभाव में गंगा को उसकी माता क्योंकर मान ली जाय? पक्षहीनों का यह स्वभाव ही होता है। अन्त में भीष्म को भी लज्जित होना पड़ा!

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : बंगाल-हिंदी-मंडल, कलकत्ता
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