प्रीतम पाबूनैह, राजंद जतनां राखजो।
तज जावूं तोनैह, नरपुर फिर मिळसूं नहीं॥
जणणी नह जायौह, इण जोड़े दूजौ अवन।
औ मो उर आयौह, जिणने सहल म जांणजो॥
प्रीतम मारौ पूत, वरदायक धर वाजसी।
सिध नर कवर सपूत, पाबू धर पूजीजसी॥
नवलख लोवड़ियाळ रे, व्रन मझ हतौ न वीर।
उणकज पाबू ऊपनौ, धांधल सुतन सधीर॥
पवंग धकै नख पाल ने, कर धांधल पर कोप।
ततखिण प्रीतम ने तजे, अपछर हुई अलोप॥