पांणी गयो पताळ, सरकारां नीं सामळै।

किण विध रूकसी काळ, समझाया समझो नहीं॥

मरर्‌‌या ढांडा-ढौर, ठोड़ छोड़ ठाकर गिया।

दुसमीं होग्यो दौर, रोको रै रण छोड़ नै॥

च्यारूं कूंटा चूंट, ठाठ जमावै ठगणियां।

बाग बाग भर भूंट, नगर नगर मैं नाग जी॥

भिष्ट कुवां री भांग, पीवै सो ही पसरिया।

सुधरै कैंयां सांग, नाच रया है नागड़ा॥

जात-पांत रै जोड़, गांव गळी गे लीजग्या।

मूंठ्यां तणीं मरोड़, छोडै कोनी छोट जी॥

मिनखपणां री मौत, दुष्टां दर दरबार सो।

काटै सांच करोत, कपटी कढ़ै करपाणा सा॥

नेता रै नीं नेह, छळ सूं छाजूराम जी।

नोटां लागी थेह, बंगलै बंगलै बुगलिया॥

बण शिक्षा बोपार, गमगी गांव गुवाड़ मै।

कतळ करै कळदार, आखर बिकै बजार मै॥

उपज्यौ अेक उद्योग, अणपढ़ करै पढ़ावणी।

राज बधावै रोग, जनता है जनमां‌ध सी‌॥

हर जीत री हूंस, खेल खिलाड़ी खोस ली।

डालर जेबां ठूंस, छक्का छुडावै आदमी॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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