स्तुति


राम निरंजन ब्रह्मजी, पुनि सतगुरु सब दास।
जन चेतन वंदन करै, करि करि बहुत हुलास॥

अंग


बांह गह्यां की राखियो, सुणूं रामजी टेक।
चेतन तो चूकां भर्‌यो, तुम बगसौ गुन्हा अनेक॥

मैं अबला कुछि बल नहीं, तुम हरि राखौ माम।
दीन होइ चते न कहै, प्रगटौ केवल राम॥

भगति कियां तुम परगटौ, सो हम कीन्हीं नाहिं।
पतित जाणि किरपा करौ, तो हम भी पतितां माहिं॥

धूत विद्या जाणूं नहीं, नहीं चातुरी कोय।
चेतन के तो अेक है, राम करै सो होय॥

राम करै सो होयगा, और न करता कोय।
चेतन तू चूकै मती, भजतां होय स होय॥

टालेड़ी के ब्रिच्छ है, ज्यूं मच्छी के नीर।
यूं चेतन के राम है, कै दूजा गुरु पीर॥

वांके सरणै तन बचै, यां सरणै जम मार।
यूं चेतन के ब्रिछ नीर ज्यूं, हरि गुरु है आधार॥

कह चेतन धनि रामजी, आछी करी सहाय।
मैं तो चाल्यौ फंद दिसि, थे सरधा दई बंधाय॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी चेतनदास ,
  • सिरजक : चेतनदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमराम कोमलराम ‘चेतनावत’, रामद्वारा, इंद्रगढ़ (कोटा) ,
  • संस्करण : प्रथम
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