ब्रह्म अगिनि सु बिचार है, मैल दहै मन माहिं।

रज्जब रज यूं ऊतरै, अभिअंतर अघ जाहिं॥

काया काष्ठ करम जरै, ब्रह्म अगिनि बिच आन।

पावक प्राण खुलै पावक सों, रज्जब सुन्य समान॥

काया काष्ठ गुण घुण करम, प्राणी पावक पाया मरम।

गुरमुख अगनी ब्रह्म ग्यान, रज्जब बहनी बहम खुलान॥

प्रभु प्रभाकर अंस है, आतम तनतनु आगि।

रज्जब संकट सो अटै, सोइ मुकत जब जागि॥

मन मनसा ततपंच लै, पुनि रज्जब रग रोम।

इहै जोगि जगि जगमगै, ब्रह्म अगिनि मधि होम॥

बिरह अगिनि की हद्द है, ब्रह्म अगिनि बेहद्द।

रज्जब रोवै द्यौस दस, ज्ञान अखंडित गद्द॥

ब्रह्म अगिनि बड़वा अनल, तन तोयं ऊषाहिं।

इसक आगि काची कहैं, जो बप बारि बुझाहिं॥

तपति कुंड ब्रह्म अगिनि, ज्यूजल सदा गरम।

बासुदेव बलहिण बिरह की, उन्हैं सीत मरम॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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