(राग श्री रांग देसी)
घोर में आव्या सरी साम, सकन होय अति भलाए।
धवलो सो दोर्यो चे अस्व, गज मल्या निरमलाए॥
गंगोदक भरिया चे कुंभ, सुन्दरी सामी मली ए।
डाबी थी उतरी वामा, जमणी देव आवी भली ए॥
डाहांवीस बोली रुपारेल, सारस बोल्या जीमणा ए।
वसीरफ जोडियो हाथ, फतह ज करे घणा ए॥
कुंआरी कन्या मली, कोई मंगल गाती मानिनी ए।
नूरत करती आवे नार, अपसरा अत घणी ए॥
चउदस भयो चे जाण, सामइये जन आक्यिा ए।
घर घर हुआ रे ओछाह, अंत्यस करण भाविआ ए॥
ब्रत्य भाट बोल बोल, भला भला सामजी ए।
केहत राधा आदे नार, हुई पूरण अम जी ए॥