स्तुति


राम निरंजन ब्रह्मजी, पुनि सतगुरु सब दास।
जन चेतन वंदन करै, करि करि बहुत हुलास॥

अंग


जागत सुक्ख न सोवतां, कहूं न लागै चित्त।
जन चेतन कह बिरहनी, मिलौ रमइया मित्त॥

दुखी बहुत दीदार बिनि, निसि दिन आठौ जाम।
कह चेतन अब बिरहनी, मिलौ सनेही राम॥

सोवै कहा सुखिया नहीं, राम मिलण को चाव।
कह चेतन अब लगि रह्यौ, निसि दिन अेक उपाव॥

चेतन जा घटि आव करि, बिरहा करिहै गाढ।
वहां मांस कहां पाइए, कै नस अर कै हाड॥

बिरहा परचडं परजलै, धवै धवणि ज्यूं ध्यान।
तपति मेटि सीतल करौ, प्रगटौ क्रिपानिधान॥

आडा पड़दा दे रख्या, अेक महल में बास।
कह चेतन क्यूं भुगतिए, आठ पहर की त्रास॥

रो रो बिरहनि रोइ ना, धीरज धरि मन माहिं।
तेरा सिर परि गुरु खड़ा, राम मिलै पल माहिं॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी चेतनदास ,
  • सिरजक : चेतनदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमराम कोमलराम ‘चेतनावत’, रामद्वारा, इंद्रगढ़ (कोटा) ,
  • संस्करण : प्रथम
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