(राग भैरवी)


महारस्य पीजे रे, महारस्य पीजे रे।
अम्य अपूरण्य रे, अंतर द्दढ़ कीजे रे॥
सूरत्य ग्रहि ने चालो रे वेलि, सोहाम तणो जल बाहुरे ठेले।
पिवसु मलिजे रे लीजे लाहों, मूरत्य मलि नाच नचा हो॥
सकल सुंदर राधा प्रते के हत्य वेण विस्वार।
कहा करो हे सुंदरी, नीर अनंत अपार॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल, नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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