स्तुति


राम निरंजन ब्रह्मजी, पुनि सतगुरु सब दास।
जन चेतन वंदन करै, करि करि बहुत हुलास॥

अंग


प्रेम खुलण की जुगति की, याही बड़ी उपाय।
चेतन पहली सीर थी, अब दरिया उमग्यौ आय॥

सायर उमग्यौ सहज में, धरि ररंकार को ध्यान।
काया बन पीवत रहै, चेतन अद्भुत ग्यान॥

काया बन पीवत रहै, भयौ डहडयौ पूरि।
जहां पंछी प्यासा मरै, चेतन उडि गया दूरि॥

राम भजन सूं खुलि गया, प्रेम तणा दरियाव।
लोभ मोह अर काम को, चेतन लगै न डाव॥

राम नाम इंम्रत भर्‌यो, ज्यूं बादळ में मेह।
कह चेतन सुमर्‌यां खुलै, नहीं प्रेम को छेह॥

सुमरै सांस उसांस ले, राम नाम ततसार।
चेतन जब इंम्रत खुलै, यामें फेर न सार॥

इंम्रत पीवै संतजन, बैठा दसवैं द्वार।
काम क्रोध मद लोभ कूं, चेतन वां लिया मार॥

राम नाम का ध्यान से, खुलै प्रेम की सीर।
चेतन ता रस के पियां, सीतल भयौ सरीर॥

राम नाम का ध्यान से, देख्या औघट घाट।
कह चेतन अे कुण लखै, गुरां बताई बाट॥

औघट घाटां जळ चढै, ढळै गगन में सोय।
चेतन ता रस के पियां, अणभै वाणी होय॥

चेतन तन में बह गई, प्रेम भालि भरपूरि।
निसि वासर कसकत रहै, पल नहिं होवै दूरि॥

चढ़तां कसकै पीठि में, ऊतरतां सब देह।
चेतन बरसै रैणि दिन, नहीं प्रेम को छेह॥

बंक नाळि होइ चढ़त है, बरसै गगन मंझारि।
कह चेतन जहां हो रही, ररंकार झुणकार॥

प्रेम घटा अैसे झरै, ज्यूं सावण का मेह।
रोम खड़ा होइ जात है, चेतन भीजै देह॥

सुरति सबद दोउ रमत है, हौद सुषमना माहिं।
चेतन वहां इंम्रत झरै, पल हूं खंडै नाहिं॥

राम भजन सूं पाइया, प्रेम तणा दरियाव।
कह चेतन अब मिटि गया, मन का आन उपाव॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी चेतनदास ,
  • सिरजक : चेतनदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमराम कोमलराम ‘चेतनावत’, रामद्वारा, इंद्रगढ़ (कोटा) ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै