भै मिलि आतम यूं बंधै, ज्यूं जल सीतल लागि।

रज्जब अचरज देखिया, कुंभ काया दे त्यागि॥

समझि सीत लागे जबहि, प्राणी पाणी दोइ।

फूटे महि सारे रहै, रज्जब देखौ जोइ॥

जमे जीव जल ठाहरै, राइल काया कुंभ।

रज्जब पघलें बहि चलै, देखौ आतम अंभ॥

भैभीत बिना भूलै नहीं, देह बिदेह होइ।

जन रज्जब दृष्टांत कौं, कीट भृंग लै जोइ॥

चंदन संगति चंदनि, पारस कंचन होइ।

कीट भृंग भै मिलि भये, तो डर समि और कोइ॥

जन रज्जब सातक लिये, गरीबी गरकाब।

तो प्राणी प्राणी जमै, मारग व्है सिर आब

निरभै नटनी पुहम परि, बरद चढ़ै भैभीत।

त्यूं रज्जब चढ़ि सुरति परि, भै मिलि होहिं अतीत॥

ज्यूं जिहाज के थंभ सिरि, रह्य काग तजि तेज।

त्यूं रज्जब भैभीत व्है, करहु नाव सो हेज॥

जे सांई का सोच व्है, तौ मन फूलै नाहिं।

जन रज्जब समट्या रहै, ज्यूं अजा उभै सिंग माहिं॥

रज्जब राम भूलिये, जे मीच रहै मन माहिं।

यादिकरण कों आदमी, या समि और सुनाहिं॥

रज्जब डर घर साध का, महापुरुष रहै माहिं।

तिनके सब कारिज सरैं, जु बाहर निकसै नाहिं॥

रज्जब डर डेरा बड़ा, बड़े रहैं बिच आइ।

भै कूं भै लागै नहीं, नर देखौ निरताइ॥

भै मिलि सब कारज सरै, भै मिलि निपजै साध।

रज्जब अज्जब ठौर डर, घर अगम अगाध॥

भै मधि भूत भला रहै, डर सों डिगै सुनाहिं।

संसा सोच सहाइ कौ, मुनी सुगुर मत माहिं॥

भाव भगती का मूल भै, भै करि भजियै राम।

रज्जब भै मिलि मृत्यु व्है, भै मै सीझै काम॥

मिहरि कहरि सों डरपियै, करत हरत क्या बेर।

ताथैं भै भागै नहीं, रज्जब समुझ्या फेर॥

मिहरि कहरि सों डरपियै, व्है बिन दिल दलगीर।

त्रिबिधि भांति त्रासै रहै, रज्जब पूरन पीर॥

भै के भंजन मैं रहै, सुकृत सरीषा धन्न।

जन रज्जब निरभै भये, दह दिसि निकसै मन्न॥

भाव भगती भै बिन नहीं, बिन भै भजै राम।

रज्जब भै बिन भिष्ट व्है, भै बिन सरै काम॥

रज्जब सब डरि निडर कौं, निरभै कौं भै पूरि।

निरसंसे संसा घणां, परतषि प्राण हजूरि॥

नीडर नलज्ज निसंक व्है, पूरि करै अपराध।

जन रज्जब जग सौं रचै, परिहरि संगत साध॥

भै भाग्यूं भूलै भजन, सतसंगति रुचि नाहिं।

जन रज्जब सेवा गई, संसा नाहीं माहिं॥

अदब अकलि मैं पाइये, सरम साफ दिल माहिं।

बेअदबी बेसरम मैं, रज्जब रजमा नाहिं॥

जो तन निपजा नीति करि, तहां नीतिग साज।

जन रज्जब सुत पंच का, करैं कौन की लाज॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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