दरद नहीं दीदार का, तालिब नाहीं जीव।

रज्जब बिरह बियोग बिन, कहा मिलै सो पीव॥

श्रवनौ सुरति पीव की, पेम लेहि समाइ।

रज्जब रुचि माहै नहीं, कहा मिलै सो आइ॥

नैनो नेह नाह का, वहि दिसि दृष्टि जाहि।

रज्जब रामहि क्यूं मिलै, तालिब नाहीं माहि॥

रसना रसह लाइये, हिरदै नाहीं हेत।

रज्जब रामहि क्या कहै, हम ही भये अचेत॥

प्यंड प्राण रोगी नहीं, औषदि नांव लेहि।

तौ बैद बिधाता क्या करै, दारू दरस देहि॥

दारू चाहै दरदवंद, निरोगी सुन लेइ।

औषदि अरथी आतमा, जो मांगै सो देइ॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै