(राग वेहाग)


रत्य न वधारे मलस्यो प्यारी, कह्यूं हमारूं कीजे रे।
आपणां स्याम सुं अंत्र न जारिये, प्रीत्य करि लाहो जीजे रे॥
भाग प्रमाणे संजोग मल्यो से, भावेसुं मनुहर भेटो रे।
कुलुवट आपणु कुल उजास्यो, दल दवद्या परि मेटो रे॥
मृग जल मिथ्या संसार मा भूलतों, दृष्टि पदारथ झूठो रे।
नेस्ये छे निरमल कृष्ण सदा हि, अविनै अवर झर कूटो रे॥
कमल पत्र पर ओर न दूतिये, निज्य तत्व नरहर स्वामी रे।
केहत नारद मुनि सुणो सुंदरी, वेग्य भेंटो हरि स्वामी रे॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल, नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम