खिण उठतां खिण बैसतां, सूरिज कोटि प्रकास।
हरि हरदास न बीसरै, जब लगि पंजरि सास॥
हरि हरदास न बीसरै, अपना प्राण अधार।
जिव की जीवनि क्यूं तजै, रटै जु बारंबार॥
कुसंगति मन मति करै, व्हैगा मति का नास।
सब जग भूला जात है, क्यूं भूलै हरदास॥
महाराज कौ मिस करै, मूढ मठीरै आप।
पेट काजि पासौ लियौ, जीभ स्वाद कौं जाप॥
पापी नैं पूजा किसी, किसौ बधिक नैं जाप।
सुनहा नैं सांठौ मिल्यौ, तौ ईसुर टूठौ आप॥