स्तुति


राम निरंजण ब्रह्म जी, पुनि सतगुरु सब दास।
जन चेतन वंदन करै, करि करि बहुत हुलास॥

अंग


रामभजन की सौक सुणि, हरखै मेरा प्राण।
चेतन यासूं पाइए, निरभै पद निरवाण॥

सब सुकृत सहजे सधै, राम भजन के माहिं।
कह चेतन देखी कहूं, सुणी साम्हळी नाहिं॥

राम भज्यां मनवौ तजै, दूजी आन उपाय।
कह चेतन अब लगि रहौ, निसदिन अेकै घाय॥

राम भजन अणभै खुलै, सुख होइ काया माहिं।
चेतन भजिये रैणि दिन, तजिए कबहूं नाहिं॥

बिनि अणभै सूना कहूं, फुरै न ग्यान बिचार।
ताते चेतन राम कूं, भजिए बारूं बार॥

राम भजन की लगि रहै, करक कळेजा माहिं।
चेतन सो रसना रटै, दूजा सुमरै नाहिं॥

राम भजन सूं पाइया, अैसा दीरघ मंत।
चेतन अेक रकार बिनि, कहूं न लागै चित्त॥

सुमरण सुख सतगुरु दिया, राह चल्यां लिया आय।
चेतन बिलसै आतमा, महिमा कही न जाय॥

अब तौ अैसा होइ रह्या, जिसा दिवाना होय।
चेतन एक रकार बिनि, नजरि न आवै कोय॥

राम भजन परताप सूं, पाया परम निवास।
कह चेतन इक राम बिनि, नहीं दूसरी आस॥

राम भजन परताप सूं, पाया दीरघ जोग।
सुरति खड़ी चेतन कहै, ले सुखमणि को भोग॥

उदै भयां सूं भान को, तम को होवै नास।
चेतन यूं भ्रम मोह गया, जब नाम किया परकास॥

अखंड सबद ररंकार है, तीन लोक के माहिं।
चेतन सुमरै रैणि दिन, कबहूं बिसरै नाहिं॥

राम भजन सूं लागि करि, यूं मन बंधी धीर।
चेतन रसना ऊपरै, खुली प्रेम की सीर॥

राम नाम का ध्यान से, इंद्र्यां खाई हारि।
कह चेतन धीरज बंधी, अब पहुंचै दरबारि॥

चेतन धनि वे मानवी, राम भजन सूं नेह।
दूजा साधन सुरति गह, जबही कांपै देह॥

राम भजन सूं रूचि बधै, राम क्रिपा जब होय।
चेतन दूजौ आसिरौ, और न दीसै कोय॥

चेतन देखत गळि गई, ओउम सोहम धाम।
अब ररकांर धुनि रह गई, भजतां केवल राम॥

ररकांर रहता पुरुष, राम नाम के माहिं।
दूजा साधन साधि करि, चेतन पावै नाहिं॥

ओउम सोहम ध्यान करि, सब भरम्या भौ माहिं।
कह चेतन इक राम बिनि, सुलझै कोई नाहिं॥

ओउम सोहम सांस यो, चते न सब घट माहिं।
जे यो सुमरण होत है, तो चौरासी क्यूं जाहिं॥

जो पहुंता सो कह गया, राम नाम ततसार।
चेतन ताही राम कूं, सुमरै बारूं बार॥

कही कबीरे नामदे, सेस कही सुकदेव।
राम भजन बिनि ना लहै, चते न अलख अभेव॥

गीता कह भागौत कह, सासतर कहै पुराण।
राम भज्यां चेतन कहै, पावै पद निरवाण॥

राम भजन करि लीजिये, निसि दिन हित चित लाय।
चेतन तू चूकै मती, सांस पाहुणूं जाय॥

दुनिया सूं चरचा कियां, जीव होइ बेहाल।
कह चेतन सुख क्यूं लहै, इंम्रत तजि विष खाय॥

राम भजन रुचि तास की, सो भौ कूं तरि जाय।
कह चेतन इंम्रत पिवै, अमर जुगै जुगि थाय॥

राम भजन बिनि सुख नहीं, तीनूं लोक मंझारि।
चेतन सुर नर असुर की, भावै जो देह धारि॥

चेतन सुरति समेटि करि, राम भजन में मेलि।
जीव ब्रह्म हो जाय ज्यूं, सब दुख देवै ठेलि॥

माया मोह ग्रभ में तज्यौ, सुक्ख रामजी हेत।
तन अरप्यौ प्रहलाद ने, चेतन मंडि रह्या खेत॥

बड़ौ दुक्ख जामण मरण, सो फिरि आवै नाहिं।
कह चेतन रामै भज्यां, मिलै रामजी माहिं॥

भै लागै भौ सिंध को, जब प्यारा लागै राम।
चेतन सो सुमरण करै, छांड सकल ही काम॥

संत सबद है खेवणी, राम नाम सो नाव।
चेतन चढिए तास परि, तो अमरापुर कूं जाव॥

करद सबद करतार को, राम नाम है अेक।
चेतन ताकूं सुमरिए, तजि करि भरम अनेक॥

सकल भरम मां काढ़ि मन, अेक राम भजन में जाव।
चेतन देख्यौ चाहिए, जो परम मुकति को चाव॥

राम नाम कूं जो भजै, सो बड़भागी होय।
चेतन वाकी मुकति में, संसै नाहीं कोय॥

पै माहीं घृत है सही, यूं ब्रह्मा सिष्टि में जोय।
चेतन मथि काढ्यां बिना, घी ब्रह्म की गरज न होय॥

पै मथि करि घृत काढिए, रटि राम ब्रह्म निरताय।
चेतन घी की गरज होइ, ब्रह्म पद रहै समाय॥

मुकति तणा सहदाण ए, रटै अखंडित राम।
कह चेतन भौ कूं तिरै, सरै सकल ही काम॥

मेल मुकति का चाहिए, तो निसदिन कहिए राम।
चेतन या साधन सध्यां, सरै सकल ही काम॥

राम भजन जो करत है, कहा गिरही कहा भेख।
चेतन पावै परम सुख, परसै आप अलेख॥

सहनसाह तिहुं लोक में, राम नाम है अेह।
कह चेतन सुमरण कियां, अभै अमर पद देह॥

राम नाम कूं सुमरतां, परगट करी सहाय।
अजामेल प्रहलाद सा, चेतन लिया बचाय॥

राम मत्रं जो बेधिया, सो बचता दीसै नाहि।
चेतन जग में ना मिलै, मिलै राम के माहिं॥

राम कहै सो सब भला, चेतन कहा नर नारि।
अमर पटा वे पावसी, साहिब के दरबारि॥

राम भजन सूं टलै, भरम होय सब नास।
चेतन घट में परगटै, ब्रह्मा ग्यान परकास॥

ज्यूं निरधन कूं धन मिलै, लेतां करै न बार।
यूं चेतन भजि राम कूं, होय होय हुसियार॥
सुमरि राम रमतीत कूं, रामहि माहिं समाहिं।
चेतन वे मम प्राण है, वा समि कोई नाहिं॥

राम भजन सूं जो लग्या, सतगुरु सरणै आय।
कह चेतन वे तिरि गया, जम का डाव चुकाय॥

सब इंदरी कर में गहै, धरै राम का ध्यान।
कह चेतन जब ही खुलै, घट में आतम ग्यान॥

चेतन धनि वे मानवी, जग सूं भया उदास।
राम भजन में रत रहै, निसदिन बारा मास॥

राम रट्यां मन उलटि कै, आवै घट के माहिं।
काम क्रोध अहंकार की, झळ कोइ ब्यापै नाहिं॥

राम भज्यां चेतन कहै, निहचल होय निवास।
चाहि मिटै सब जीव की, लहै ब्रह्मा पद बास॥

सबही मुख महिमा करै, राम नाम की साध।
चेतन सुमरि सुवाद ले, जाकी बात अगाध॥

जो नर सुमरै राम कूं, तन मन प्रीति लगाय।
वाको चित चेतन कहै, दूजी दिसा न जाय॥

राम भजन के पटंतरै, दूजा साधन नाहिं।
चेतन तू लागै मती, और भरम के माहिं॥

जोगारंभ को मूल है, सब साधन को तत्त।
चेतन भजिए राम कूं, छाड़ि सकल ही मत्त॥

चेतन चाह्यै भौ तिर्‌यो, तो निसदिन कहिए राम।
ईं साधन बिनि ना मिलै, ब्रह्म विलासी ठाम॥

नर देह सूं नाराणि में, संत मिल्या रटि राम।
ताते चेतन भजन करि, ज्यूं लह संतां की धाम॥

राम भजन यूं कीजिए, ज्यूं हलकारा की चाल।
चेतन चलै उतावळौ, जेतौ होय निहाल॥

सोई जीव सुख्यारथी, राम भजन सूं नेह।
चेतन सो प्यारा लगै, वां सफळ करी नर देह॥

नर देही में लाभ बड़, जो रसना उचरै राम।
कह चेतन गिरही कहा, सरै भेष को काम॥

सील धारणा उरि दया, राम भजन सूं हेत।
चेतन मिनखा देह को, वे ही लाह्वा लेत॥

काम क्रोध मद लोभ में, मनसा दीजे नाहिं।
चेतन निसदिन राखिए, राम भजन के माहिं॥

राम राम रसना रटै, सील संतोष सम्हाय।
चेतन दया न बीसरै, तो मिलै ब्रह्म में जाय॥

राम भजन करि रैणि दिन, ज्यूं कदे न आवै हारि।
चेतन मिनखा देह की, जो जीति चाह्वै सारि॥

भौ सागर का तिरण कूं, राम नाम है अेक।
चेतन थे भजबौ करौ, तजि नाना भरम अनेक॥

राम भजन सूं रुचि बधी, जब मनसा बाचा जाणि।
चेतन आन उपाय सब, लागै जहर समानि॥

राम भजन में लाभ यो, रह गयौ अेक हि राम।
कह चेतन उर सूं गया, दूजा सबही काम॥

चेतन चाह्वै राम सूं, घणी बधाई प्रीति।
तो निसि बासर राम रटि, तन मन इंद्री जीति॥

प्रीति बिना परसण नहीं, नर भी कोई थाय।
ताते चेतन राम भजि, भारी प्रीति बधाय॥

सांस उसांसां राम कह, हमला करि इक घाय।
चेतन अंतर ना रहै, सांस सबद मिलि जाय॥

राम नाम कूं हम रट्यौ, गह करि सांची टेक।
चेतन पड़दा मिटि गया, सांस सबद भया अेक॥

राम राम रसना रटौ, अेक अखंडित धार।
चेतन भूली न खंडिये, लै कूं अेक लगार॥

राम सुमरि सुख लीजिये, मिनख देह को लाभ।
चेतन जम जालिम कनै, जो राखी चाह्वै आभ॥

राम भजन सूं परगट्यौ, चेतन घट में ध्यान।
यूं निहचै आई नाम की, अब दांय न आवै आन॥

रामभजन कूं आकली, आन बात रहि हारि।
चेतन सो रसना भली, भौ मां देवै त्यारि॥

राज रैति को भै नहीं, जम करि सकै न जोर।
चेतन भजिये राम कूं, तजि उपाय सब और॥

चेतन चाह्वै भौ तिर्‌यो, तो अेक नाम उरि धारि।
दूजा सबही दूरि करि, रसना राम उचारि॥

कह चेतन भौ सिंध में, राम नाम है नाव।
संत सुमरि करि तिरि गया, दुनिया कियौ कुडाव॥

राम भजन का भेद बिनि, जग बूडि गयौ भौ माहिं।
संत सुमरि करि तिरि गया, चेतन फिरि भौ आवै नाहिं॥

चेतन सुमरण राम के, सुधरै लोक प्रलोक।
जीवै जहां लूं सुख घणा, मौसर सबही थोक॥

राम भजन को देखि ल्यौ, चेतन यो परताप।
अटल भयौ धू आदि अंति, कियौ रामजी आप॥

गणिका सिरखी तिरि गई, सुवौ पढ़ावत राम।
चेतन जग समझै नहीं, अैसो अंध निकाम॥

राम भजन में सुख घणौ, जे सुमरै चित लाय।
जीव दुक्ख ब्यापै नहीं, जन्म मरण मिटि जाय॥

सकल सिष्टि जो बड़ा सो, या धारै उरि माहिं।
राम सुमरि राम रामै मिलै, चेतन अटकै नाहिं॥

राम भजन बिनि अटकबौ, सो सब दुख को मूळ।
कह चेतन सुख ना लहै, मिटै न सांसै सूळ॥

राम नाम कूं सुमरतां, बधी राम सूं प्रीति।
कह चेतन अब यूं भई, मच्छी जळ की रीति॥

चेतन को तो राम सूं, अैसो लग्यौ सनेह।
जैसे मच्छी नीर बिनि, बिछड़त त्यागै देह॥

राम नाम रमतीत को, सुमरै बारूं बार।
जन चेतन सांची कहै, तो भौ उतरै पार॥

राम भजन में रैणि दिन, जो तन मन होवै रत्त।
कह चेतन संसार सुख, सब खारा लागै मत्त॥

राम रट्यां ही मोखि ह्वै, राम रट्यां रह नांव।
राम रट्यां चेतन कहै, सब जग लागै पांव॥

चेतन तो जड़ जीव छौ, बुधि कछु होती नाहिं।
ग्यान ध्यान सब नीसर्‌यो, राम भजन के मांहि॥

माया मोह कूं त्यागि करि, राम भजन रत होय।
कह चेतन वासूं बड़ौ, नहीं सिष्टि में कोय॥

जिसौ बीज ले बाहिये, जैसो ही फळ होय।
यूं राम सुमरि रामै मिल्या, चेतन दुबिध्या खोय॥

राम नाम इंम्रत बण्यूं रट्यां अमर होइ जाय।
कह चेतन जग ना रटै, दौड़ि र विष कूं खाय॥

राम नाम नै सुमरि कै, चेतन पाया भेव।
ररंकार संगि सुरति है, सो सदा अखंडित देव॥

विषै भोग को त्यागि करि, राम रटै निसि जाम।
चेतन वाकौ होइगौ, राम माहिं बिसराम॥

जगत छांडि सुखिया भया, मेट्यौ हरख र सोग।
राम सुमरि चेतन कहै, कियौ सुरति सबद को जोग॥

सुरति सबद को जोग करि, तिरि गया संत अपार।
कह चेतन रामै भज्यां, हम अैसो पायौ सार॥

जो कोई सुमरै राम कूं, होय होय हुसियार।
जन चेतन सांची कहै, पीछै राम न छांडै लार॥

कूवौ खोदै नीर कूं, सो सेजा लग ले जाय।
कह चेतन यूं राम भजि, घट में ध्यान जगाय॥

सुमर्‌यो सांस उसांस लगि, पीछै रोम रोम हुवौ राम।
चेतन ज्यूं पाट मजीठ रगं, अेक मेक बिसराम॥

राम भजन करता थकां, ढीला खड़िए नाहिं।
कह चेतन अैसो धरम, नहिं तीन लोक के मांहि॥

कह चेतन सो सुळझिया, भौ कूं उतर्‌य पार।
निसि बासर करता रहौ, रसना राम उचार॥

करसौ जाइ र खेत में, बूका भरि भरि पाय।
चेतन भूखौ ना रहै, भरि ले पेट अघाय॥

हमला कीजे भजन का, ज्यूं किलै चहोड़ै नालि।
कह चेतन ढीलौ कहा, कारिज करि ततकालि॥

राम मिल्या सो राम भजि, दूजी साधन नाहिं।
चेतन दूजी राज रिधि, कै सुरग लोक में जाहिं॥

मन की मिटि जाइ हिरस सब, सुख में रहै समाय।
कह चेतन रामै भजै, निसि बासर इक घाय॥

राम नाम कूं सुमरिये, निसि बासर इक घाय।
चेतन मन कूं मारिकै, राम माहिं मिलि जाय॥


चेतन चित में चेति कै, भिनि भिनि किया बिचार।
यो भौसागर तिरण कूं, इक राम भजन है सार॥

राम भज्यां महिमा बधै, मुकति पहूंचै प्राण।
कह चेतन लागै नहीं, जम जूरां का बाण॥

चेतन चिंता कीजिये, राम भजन की अेक।
दूजी चिंता करत है, सो सब वृथा अनेक॥

राम कह्यां भौ कूं तिरै, महिमा बधै अपार।
कह चेतन साधू भजै, क्या जाणै जगत बिचार॥

राम भजन सूं रस रहै, राम दरगहै माहिं।
चेतन मिली रह राम में, फिरि भौ आवै नाहिं॥

जग को मन माया जुथ्यौ, निसि दिन करै उपाय।
जन चेतन कह राम सूं, यूं मो मन सुमरण लाय॥

राम भज्यां मनवौ मुड़ै, जग तजि लागै ध्यान।
कह चेतन जब पाइये, निरभै ब्रह्म सथान॥

राम भजन धन कष्ट बिनि, सुमर्‌यां भेळा थाय।
जरै बरै नहिं चोर ले, चोर न सकै छिनाय॥

कल फेरत है ख्याल की, तब करै फूतळी तान।
चेतन यूं रटतां राम कूं, घट में प्रगट्यौ ध्यान॥

कोई खांडै कोइ पीसि हैं, कोइ मृदंग बजावै ताल।
यूं रोम रोम ररकार धुनि, घट में होवै ख्याल॥

कल फेर्‌यां बिनि ख्याल की, करै न कोई चाव।
चेतन यूं रसना बिनि रट्यां, मूरिख करै कुढाव॥

दुजि गज बंच्यौ काल सूं, अेक बार कह्यां राम।
चेतन सुमरै रैणि दिन, क्यूं नहिं सरसी काम॥

राम भजन में सुख अनंत, सुमर्‌यां सूं पावै।
बिनि सुमर्‌यां चेतन कहै, हाथि नहीं आवै॥

राम भजन लवलीन होय, जब हरि पकड़े हाथ।
चेतन राजी नाहीं रामजी, कियां ललो पतो की बात॥

हरी क्रिपा जा परि घणी, जो राम भजै लवलीन।
कह चेतन दूजा सबै, दुनिया आगै दीन॥

राम दया यूं होत है, राम भजन हूं प्रीति।
कह चेतन सब बीसरै, और भरम की रीति॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी चेतनदास ,
  • सिरजक : चेतनदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमराम कोमलराम ‘चेतनावत’, रामद्वारा, इंद्रगढ़ (कोटा) ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै