रज्जब ल्यौ मधि लंघियेहि, लांबे लोक अनंत।
आतम के अंतर उठै, कामिनि पावै कंत॥
ल्यौ लाग्यों लहिये अलह, ल्यौ मैं लूटि अपार।
रज्जब ल्यौ लहिये लुक्यां, उर आननि आधार॥
ल्यौ की लाठी मारतौं, मीच सु मारी जाय।
रज्जब ल्यौ लालहिं मिलै, ल्यौ मैं काल न खाय॥
रज्जब ल्यौ में लाभ है, लीनहु वारहु माहिं।
ल्यौ मैं लत लागै नहीं, और खता मिटि जाहिं॥
जन रज्जब या लोग मैं, ल्यौ निस्तारनि हार।
आदि अंत मधि मुनि मही, लघु दीरघ ल्यौ लार॥
रज्जब लाइक ठौर ल्यौ, ल्यौ मैं रहै सुलाज।
लघु दीरघ व्है लागि ल्यौ, ल्यौ करणी सिरताज॥
ल्यौ मारग लूटैं नहीं, लोभी लूटण हार।
रज्जब पग लागै चलहिं, परपंची सिरदार॥
रज्जब लाहा लाभ ल्यौ, टूटे टोटा हाणि।
सावधान सांधे रही, रे जीव जीवण जाणि॥
ल्यौ सुमिरण धुन ध्यान धरि, चिवबि नेह कर नाम।
जन रज्जब जपि जिकर रटि, सुरति संभालौ राम॥
बंदे कौ यहु बंदगी, साहिब करना यादि।
यहि सेवा सुमिरन यहै, यहै जिकरि फ़रियादि॥