प्रीति इकंग महा बुरी, दुख दीरघ दिल होय।

काहि पुकारै किस कहै, बेली नांहीं कोय॥

प्रीति इकंगी लागतै, प्रान परै दुख दंद।

मरकट सूवा ज्यूं बधि, बिन बंधन दृढ फंद॥

चात्रिक मोर पुकार सुनि, कछु मेघ आवै।

तैसें रज्जब रटत हैं, पिव पीर पावै॥

चकोर चाहि चंदन उदै, जीव ब्रह्म त्यूं आहि।

नातौ एकहि वोर कों, यहु दुख कहिये काहि॥

देखौ बिरह बमेक बिन, उपज्या अहमक अंग।

दीपक कै दिल ही नहीं, रज्जब पचन पतंग॥

रज्जब माया ब्रह्म बिच, जीव आपसों जाइ।

उभै सु बेपरवाह वै, नर देखो निरताइ॥

रज्जब जलणा मड़े संगि, त्यों इक अंगी प्रीति।

दुख सुख की पूछै नहीं, यह देखौ बिपरीति॥

औषधि कीजै आव बिन, सो लागै कोइ नाहिं।

त्यूं इक अंगी प्रीति है, समझि देखि मन माहिं॥

आतम औषधि क्या करै, आगै रोग असाध।

बहु बिधि बूटी बंध की, लागै नहीं अराध॥

बज्र बेधै बीधणी, ब्रह्म बन्दगी तेम।

रज्जब करुना करि थके, रीझै नहीं सु नेम॥

अकल कलहु कलिये नहीं, सब भागे जिव जोर।

रज्जब रही सु एक ही, दरस दया प्रभु वोर॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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