वेण्य वृन्दावन रलिआमणुं, प्रगट्या महाव्य क्रतार्य हो।

सुकारे व्रख पलव थयां, मोर करत्य गुंजार हो॥टेक॥

चम्पा चमेली केतकी, मोगरा दाड़म दाख हो।

गोलाब व्रेहोल जुखड़ी, मालती मोर्यो वैसाख हो॥

कदम सीतल व्रख उगिआं, चन्दन करे बोहो वास्य हो।

केसर व्रख फूली रह्यां, अगर तगर विलास हो॥

हेमा उदाल की डोड़िए, हजारी फूल अपार हो।

झांजी ग्रंजा की वेलड़ी, लेंबुरी मोरी स्यार्य हो॥

आंबा जांबु आंमली, सीत क्रण्णार अपार हो।

वास्य सुवास्य महिके घणि, फूले भार अठार हो॥

भाग्य सखिआं मतणों, खेल खेलण कुं धाय हो।

केहत सुरानंद प्रेम सुं, साम मनुहर मल आए हो॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम