सुणों सखी वातड़ी रे, राधा एण पर बोल्या वाण।

मनुहर केआं गयां रे, हवणी आं रमता निरवाण॥

चालो सो जोवा रे, मनुहर गब थआं निरधार।

अंग्यना टोले मली रे, माहो माहे करे विस्मार॥

कदमन रुख ने रे, राधा पुछन लागी त्या्ंह।

व्रहे थई व्याकुली रे, व्रहेणि वेण वृन्दावन मांय॥

न्यणे नीर झरे रे, चुनु चीखड़े लुती।

नीची थई नमे रे, हरि कम्प गलड़ी ज्योति॥

पिताम्बर क्यां ग्यां रे, सखिओ मारु पुरण पाप।

हवे हूं स्यू्ं करुं रे, राधा रोए आपो आप॥

मनुहर बस्ये तरे, सखिओ आपूण रमता रास।

पल में अलप थयां रे, हवणा हुता आपणे पास्य॥

सखिओ एम रोए रे, आपणी ओती पूरव प्रीत।

वालोजी नाचता रे, सखिओ आपुंण गाता गीत॥

राधा एम कहे रे, आपुण्य वेठस्यां महीत्रट घाट।

घड़ी एक स्थी रे थई रे, जोइये मनुहर केरी वाट॥

मनुहर नए मलो रे, आपुण तजस्यु्ं प्राण।

सत भक्ति करो रे, हवणां प्रागट्थे सारंग प्राण॥

आदू द्रहे कने रे, सखीओ भक्ति करो अपार।

सामी जागसे रे, सखीओ करस्ये आपणी सार॥

गणिवेरा टप करस्यु्ं रे, सखिए जोगे ध्या्न घरि वेस्य।

सुन्दर विस्यार यूं रे, कहो ने कीजे कुंण उपाय।

स्वामी नाविया रे, सालां पड़िए व्रहज माहें॥

अंग्यना सज थई रे, सउकुं जल में तजवा तन।

आनंद होई रह्यो रे, माहो कहे दृढ़ मन॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम