धरम धरम नर उच्चरे, धरे धरम नो मरम।

धरम कारन प्राणि हणे, गणे निस्ठुर करम॥

धरम धरम सहु को कहो, गहे धरम नू नाम।

राम राम पोपट पढे, बूझै ते निज राम।

धनपाळे धनपाळ ते, धनपाळ नामे भिखारी।

लाछि नाम लक्ष्मी तणूं, लाछि लाकड़ा वहे नारी॥

दया बीज विण जे क्रिया, ते संघळी अप्रमाण।

सीतळ संजळ जळ भर् या, जेम चंडाळ बाण॥

धरम मूळ प्राणी दया, दया ते जीवणी माय।

भांट भ्रांति आणिए, भ्राते धरमनो पाय॥

प्राणि दया विण प्राणि नै, अेक इछ्यूं होय।

तेल वेळू पलिता, सूप तोय विलोय॥

कंठ बिहणूं गान जिम, जिम विण व्याकरणे वाणि।

सोहे धरम दया बिना, जिम भोयण विण पाणि॥

नीचनी संगति परिहरो, धारो उत्तम आचार।

दुर्ल्लभ भव माणस तणो, जीव तूं आलिम हार॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : संत वीरचन्द्र ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर
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