साम मनुहर एणिपेर बोल्या, सुख्य आनंद मन जाणी रे।
मेरा कारण की वात्य कहंउ, चुणो विस्वा रूसी वाणी रे॥टेक॥
एक कांरज्य अब करे ने हमारो, मन वचन दृढ़ जाणी रे।
सुरानंद मुनि एक आस्यक मारी, तेहकु मेलावो आणी रे॥
रूप अन्य उपन्ये सी कहूं सोभा, तेज तणो नहीं पार रे।
ताइके स्यंबाणि बोह्त्य घणेरी, नारि बोहोत्य हजार रे॥
त्येह ने तू तेड़ि लाव वेल्येरी, राधाजी ताको नाम रे।
अरर्नारि सुण जी न करता, एक संगाथ काम रे॥
कान माहे जई ने तू केहेजे रे, चैतन्य करि भलियां त्यरे।
एक पुरुष कोई अपूरव आयो्, तुझ तेड़े एकान्त रे॥
ब्रह्म जैसो वाको रूप बण्यो छे, साम स्वरूप अग्य कारो रे।
पुरस्य केरी प्रीत्य संभालो, गुण प्रकास्ये तुमारो रे॥
ते माटे तुम्ये वेग्या सधावो, सूरत्य सुं काम सधारो रे।
कहेत मनुहर सुण विस्वामुनि, तब हि मैत्र हमारो रे॥