समहर सज करी कृष्ण सांवरीया।
छपन कोडि परिवरीया।
छत्र त्रण शिर उपरि धरीया।
राही रूखमणि सम सरीया॥
साहेलड़ी जिणवर वंदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ।
साहेलड़ी रे जग गुरु वंदण जाई॥
ढोल तिवल घणु वाजा वाजि।
ससर स्रबद छवि छाजि॥
गुहिर नाद नीसाजण गाजि।
वेणा वसवि राजि॥
साहेलड़ी जिणवर वंदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ।
साहेलड़ी रे जग गुरु वंदण जाई॥
आगलि अपछर नाचि सुरंगा, चामर ढाळि चंगा॥
देइय दान ए घ्घार जिम गंगा, हीयडलि हरख अभगा॥
साहेलड़ी जिणवर वंदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ।
साहेलड़ी रे जग गुरु वंदण जाई॥
मेगल उपरि चडाउ हो राजा, धरइ मान मन मांहि।
अवर राय मुझ सम उन कोई, नयणडे निम जिन चाहि॥
साहेलड़ी जिणवर वदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ ।
साहेलड़ी रे जग गुरू वंदण जाई॥
मान थंभ दीठि मद भाजि, लहलहि धजायए रूड़ी।
परिहरि कुंजर पाळु चालि, धरउ मान मति थोड़ी॥
रयण सिंघासण बिठादीठा, सिवादेवी तणउ मल्हार॥
साहेलड़ी जिणवर वंदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ।
साहेलड़ी रे जग गुरू वंदण जाई॥
समोसरण मांहि कृष्णु पधाऱ्या साथि सपरिवार।
साहेलड़ी जिणवर वंदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ।
साहेलड़ी रे जग गुरु वंदण जाई॥
समुद्र विजय से अवर बहु राजा वसुदेव बलिभद्र हरखि।
करीय प्रदक्षण कृष्ण सु नमीया, नयड़े नेम जिननरखि॥
साहेलड़ी जिणवर वंदण जाइ, नेमि तणा गुण गाइ।
साहेलड़ी रे जग गुरु वंदण जाई॥