अेक दिवस माळी बनी गउ, अचरित देखी उभु रहयु।
फल्या वृक्ष सवि एकि काल, जीवे वैर तज्या दुख जाळ॥
फरी फरी जो वाला गुवन्न, समोसरणि जिन दीठा धन्नि।
आव्या जाणी नेमिकुमार, मनस्करी जपि जयकार॥
लेई भेंट भेद्यु भूपाल, कर जोड़ी इम भणि रसाल।
रेविगिरि जगगुरु आवीया, सभा सहित मिव द्वाविया॥
कृष्ण राय तस वाणी सुणी, हरख वंदन हूउ त्रिकु खंड घणी।
आलितोस पंचाग पसाउ, दिशि सनमुख थाई नमीउराउ॥
राइ आदेस भेरी ख कीया, छपन कोडि हीयडि हरखीया।
भव्य जीव घ्घाइ समसि, करि घ्घोत अेक मन मांहि हंसि॥
पट हस्ती पाखरि परिगर् यु, जाणे अेरावण अवतर् यु।
घटा रखना घण घणकार, विचि विचि घुघर घम घम सार॥
मस्तकि सोहि कुंकम पुंज, झरिदान ते मधुकर गुंज।
वासि ढाल नेजा फरिहरि, सिणगारी राइ आगिल धरि॥
चड्यु भूप मेगलनी पूठि, देर दान भागल जन मूठ।
नयर लोक अतेउर साथि, धर्म तणि धुरि दीघु हाथ॥