साहिब सुलतान तूं ही, मैं गुलाम तेरा।
धंणी तूं धणियाप कीजै, मिहरबान मेरा॥
आदि अंत तूं ही जाणै, पाना जाद तुम्हारा।
लाल बुवा लौंडी का जाया, हरि बोला हुसियारा॥
सादिया वैहल वै मीरां, ऐसी भांति कमाऊँ।
तुम्हारे दरबार बिना, दूरि रह्या दुख पाऊँ॥
बंदे की अरदासि याही, साहिब सुणि लीजै।
बखनो बकसीस पावे, पाँव लागण दीजै॥