ऊजम अंग अगाहि अडप जिम आसति, पौहथि न कोई अेवड़ पहि।
अेकाअेक अउब अेकांणवि, सिंघ तणा परिकार सहि॥
सूरति सत सील साच ध्रम सासत्र, विसन भगति अधिकार विमेक।
रूपक राग राजवट राणौ, उदयसिंघ सा जांणै अेक॥
ऊपावी सिलह लाख दळ ऊपरि, वपि अेती वीरति विगति।
खाग साहियै समौ खुमांणां, खग-धर कोई न मांहि खति॥
वा समीयौ विसुह विभौ वैवाजै, सुकर स्त्रवै सहिंजी क सति।
चाइ उचतिपति प्रतैं चीत्रौड़ौ, पौह अनि किसा तियाग-पति॥
आखै तन अलीन लूक उवचर, बैरी हैंसर सौ वयण।
सुं साइवट तणौ सांगावत, भूप न को अनि नर भुयण॥
प्रासाद सलिल बंधण निज पात्रां, पै बळि सेवै काज पनि।
दूजौ माग हमीर दसू रौ, धरपति दूजा तणा वनि॥
सिव सासत्र सार संगि बेदी सहि, करैज अरघ विचारि करि।
ते जाणे वौ सुपह कुंण जांणै, पंडित हीया धरी परि॥
ऊतिम चित गात्र जग ऊपरि, तखत सहित प्रामीया तिण।
प्रम दूि जवा रांण जांणै परि, जनम जनम पूजीया जिण॥
अैहंकार अटप तप तेज आचरण, निय कुळ छळ निरमळ निखति।
रिसि राजवट राइ-गरु राणौ, पोढ़ौ सहि छात्रै तपति॥
रूपक सहस भेदगर राणौ, विचित्र वयण वाखांण वळि।
पौहवी जो सहस कृत प्राकृत, खुरसाणौ अेवड़ी कळि॥
जो अे मात सुरत जूजुवी जांणै, गीये तणी खटत्रीस गति।
नरवै नाद सही नागद्रहौ, पीणम है संसार पति॥
चंचळ वऊ चाल मदोन्मति मैंगळ, काया विमळ दीपै कमळि।
राज मुण सव वट अदबची रांणौ, जग पौह कुण कीजै जमलि॥
त्रंमग पुनि त्याग निगेम वयण तति, प्रण जांणहर परम पैखीत।
गात मरम आखर सर पौह गति, चाइ गुर रांख स जाणै चीत॥
आसा रै नरां अंतरां अंतर, कमळ हेत क्यावर करगि।
सुपह विमेक जहीं सांग वत, जांणै कुण अेवड़ा जगि॥
राजा तन राव रावळै राणा, सव सेवै तूअवै सकळ।
अे-देईवा गति माळहर दीपक, मानव गति वीजौ मंडळ॥