सखी री सावनि घटाई सतावै।

रिमि झिमि बूंद बदरिया बरसत, नेम नेरे नहिं आवे॥

सखी री सावनि घटाई सतावै॥

कूंजत कीर कोकिला बोलत, पपीया वचन भावे।

दादुर मोर घोर घन गरजत, इन्द्र धनुष डरावे॥

सखी री सावनि घटाई सतावै॥

लेख लिखूं री गुपति वचन को, जदुपति कु जु सुनावे।

रतनकीरति प्रभु अब निठोर भयो, अपनो वचन विसरावे॥

सखी री सावनि घटाई सतावै॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : भट्टारक रत्नकीर्ति ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर