सखी री सावनि घटाई सतावै।
रिमि झिमि बूंद बदरिया बरसत, नेम नेरे नहिं आवे॥
सखी री सावनि घटाई सतावै॥
कूंजत कीर कोकिला बोलत, पपीया वचन न भावे।
दादुर मोर घोर घन गरजत, इन्द्र धनुष डरावे॥
सखी री सावनि घटाई सतावै॥
लेख लिखूं री गुपति वचन को, जदुपति कु जु सुनावे।
रतनकीरति प्रभु अब निठोर भयो, अपनो वचन विसरावे॥
सखी री सावनि घटाई सतावै॥