कहा थे मंडन करूं कजरा नैन भरुं, होऊं रे वैरागन नेम की चेरी।

सीस मजंन दउें माग मोती लेउं, अब पोरहुं तेरे गुननि वेरी॥

काहू सूं बोल्यो भावे, जीया में जु अेसी आवे।

नहीं गये तात मात मेरी॥

आली को कह्यो करे, बावरी सी होइ फिरे।

चकित कुरंगिनी युं सर धेरी॥

निठुर होइ अे लाल, वलिहुं नैन विसाल।

कैसे री तस दयाल भले भलेरी॥

रतनकीरति प्रभु तुम बिना राजुल।

यो उदास गृहे क्युं रहेरी॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : भट्टारक रत्नकीर्ति ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर