कहा थे मंडन करूं कजरा नैन भरुं, होऊं रे वैरागन नेम की चेरी।
सीस न मजंन दउें माग मोती न लेउं, अब पोरहुं तेरे गुननि वेरी॥
काहू सूं बोल्यो न भावे, जीया में जु अेसी आवे।
नहीं गये तात मात न मेरी॥
आली को कह्यो न करे, बावरी सी होइ फिरे।
चकित कुरंगिनी युं सर धेरी॥
निठुर न होइ अे लाल, वलिहुं नैन विसाल।
कैसे री तस दयाल भले भलेरी॥
रतनकीरति प्रभु तुम बिना राजुल।
यो उदास गृहे क्युं रहेरी॥