बरज्यो न माने नयन निठोर।
सुमिरि सुमिरि गुन भये सजल घन, उमंगी चले मति फोर॥
चंचल चपल रहत नहीं रोके, न मानत जु निहोर।
नित उठि चाहत गिरि को मारग, जेहि विधि चंद्र चकोर॥
बरज्यो न माने नयन निठोर।
तन, मन, धन यौवन नहीं भावत, रजनी न भावत भोर।
रत्नकीरति प्रभु वेगो मिलो, तुम मेरे मन के चोर॥
बरज्यो न माने नयन निठोर।
सखी री नेमि न जानी पीर।
बहोत दिवाजे आये मेरे घरि, संग लेई हळधर वीर॥
सखी री नेमि न जानी पीर।
नेमि मुख निरखी हरखी मनसू, अब तो होइ मन धीर।
तामे पसूय पुकार सुनी करी, गयो गिरिवर के तीर॥
सखी री नेमि न जानी पीर।
चंदवदनी पोकारती डारती, मंडन हार उर चीर।
रतनकीरति प्रभू भये वैरागी, राजुल चित्त्त कीयो धीर॥
सखी री नेमि न जानी पीर।
सखि ! को मिलावै नेम नरिंदा।
ता विन तन यौवन रजत हे, चारु चंदन अरु चंदा॥
सखी री नेमि न जानी पीर॥
कानन भुवन मेरे जीया लागत, दुःसह मदन को फंदा।
तात मात अरु सजनी रजनी, वे अति दुःख को कंदा॥
सखी री नेमि न जानी पीर॥
तुम तो सकर सुख के दाता, करम अति काए मंदा।
रतनकीरति प्रभु परम दयालु, सेवत अमर नरिंदा॥
सखी री नेमि न जानी पीर॥