मोरली ते स्याम वस्य किना, हाथ हमारे स्यू्ं हरि लिना।
रात्य-दिवस रहे अंग लागी, एक पलक रहे नहे आघी॥
तू तो ताहरी हरिगुण गावे, व्रहे हमारो काम जगावे।
सबद तोहारो सख नाद न्यारो, अंग्य वहे मारे करवत्य धारे॥
वेरी हमारे ज्यु्ग में न कोई, एक वेहरण ज्योग तू हीज होई।
कुल स्यंसारी माया रे तुटी, अवर करिआ दोर रे चुटी॥
घर भित्य्र मां रे हणुं न जाए, सबद सुणा चित्य व्याकुल थाए।
अन्य पाणी की सुधा न को रहे, अन्त्यस करणे अग्नी रे दहे॥
ऊंची-नेची कथणी रे भूला, एक तुमारी नाद में भूला।
अंग्य अमारा तो सब्द वेध्या, रोम-रोम चिद्र अन्त्यर भेद्या॥
तू चे धुतारी धागड़ धूनी, कामण्यगारी अनहद खूनी।
एकाएकी हजूरे तू खेले, सम प्रमात्यम लई कर बेले॥
कंत अमारो तुझने भोरायो, गुण्य सबद करी अंग्य समायो।
सुधा बुधा वेहुणी तू नेगुणी रे दिसे, पिव हमारो तू क्यूं लइस्ये॥
प्रीत्य सउजे सरखी रे जोइये, एक लड़ी क्यू्ं पिव लई सुइये।
कमल नयन अमारो स्वामी, तेह तूने राख्या प्रीत्य सु दामी॥
अत्य घणो अत्य एम न किजे, वारो आपणो व फिना लिजे।
ताहरे वाटे स्वामी क्यू्ं आया, अम्यो कहो क्यूं वेचिरे खाया॥
ताहरे अमारे झगड़ो रे थास्ये, धाम अखाड़े रे गान गवासे।
पचे केहस्यो् केनारो न मलिओ, दोस्य् हमारो रे संगरो रे टालिओ॥
माटे हवां तुमे जार रेजो, मधुरे मधुरे स्वर सुरे वेहजो।
तुमरे अम्यो किजे रे धाय्, स्यू्ं करिए चो हरि हाथ माए॥
दल दुखवी ने तुमस्यू्ं रे कहिए, स्याम थी रेहजुरे अन्त्यर हईये।
वरि तुमारा पेउने रे बुझो, अरस्य-परस्य मन ग्यान रे गुजो॥
केहत राधा आदे सख नारी, विस्यारी परत्ये प्रेम सुं गारी॥