धन्य हाथ ते नर तणा, जे जिन पूजन्त।

नेत्र सफळ स्वामी हुवा, जे तुम निरखंत॥

श्रवण सार वळी ते कह्या, जिनवाणी सुणंत।

मन रुडु मुनिवर तणु जे तुम्ह ध्यायत॥

थारू रसना ते कहीए जे लीजै जिन नाम।

जिन चरण कमल जे नामि, ते जाणो अभिराम॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : संत सुमतिकीर्ति ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर