जल बिन मीन तलफे स्वामी, तेम थासे तुम माटे रे।

वेग्य करी घर आज्यो सामलिया, विज्योगे हइरूं फाटे रे॥टेक॥

अंग्य हमारे उतापो थइसे, अन्न उद्यक ने भावे रे।

एक धारण्य रही वाट जोआँ छां, कब घर प्रीत्यम आवे रे॥

कंद्रप कोर काड़ी ने रहोस्ये, स्वाम किजो अम स्यार रे।

राज्य विना रहणु नव जाए, दुख थास्ये अपार रे॥

दिपक विना मंदिर सूनो,ज्यू्ं कंथ विना नारी रे।

केहत राधा आदे स्रव सुंदरी, सरभ वेज्यो साम मारी रे॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम