हे कोलड़ो रे सखी आ्यो सावन मास॥टेक॥

पावस प्रित वरखा घणी रे। वृक्ष पत्रम मरत बोत।

तेम तेम प्रितम सामल रे। सुरत संसल इन्द्र॥

मोहन तारी मोरली। घणी सुन्य कर्ण माहे।

नेन्द्रा ने आवे सामजी रे। मलवां करो क्यु ने हे॥

विलापे उबी जोग अरे। अहो वीछे करूं रे आस।

सेजलड़ी वेरेण भइ रे। पुरो हमारी आस॥

साम वियोग गेहरो घणो रे। कोथीक कहयो जाए।

संत की जाणे साहेब रे। के दुख सहे मन माए॥

नीर बिना हुके मेदनी रे। सुंदर वेहणी साम।

रक्षा करो निज विट्ठला रे। पुरो मन की आस॥

जीवन आवो ज्युग पति रे। पुराण परमानंद।

व्रेहं का दुख मेटावो रे। व्रत अक्षय आनंद॥

हर विरहणी विपाल वरणे। धरे दुःख अपार अनंत।

आवो विरह संताप मेटो। मारे सेज माहे मेरो नंद॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम