घोर में आव्या सरी साम, सकन होय अति भलाए।

धवलो सो दोरयो चे अस्व, गज मल्या निरमलाए॥

गंगोदक भरिया चे कुंभ, सुन्दरी सामी मली ए।

डाबी थी उतरी वामा, जमणी देव आवी भली ए॥

डाहांवीस बोली रुपारेल, सारस बोल्या जीमणा ए।

वसीरफ जोडियो हाथ, फतह करे घणा ए॥

कुंआरी कन्या मली, कोई मंगल गाती मानिनी ए।

नूरत करती आवे नार, अपसरा अत घणी ए॥

चउदस भयो चे जाण, सामइये् जन आविया ए।

घर घर हुआ रे ओछाए, अंत्यस करण भाविआ ए॥

ब्रत्य भाट बोल बोल, भला भला सामजी ए।

केहत राधा आदे नार, हुई पूरण अम जी ए॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम