जीव दया दृढ पाळीइए, मन कोमल कीजि।
आप सरीखा जीव सबै, मन माहि धरीजइ॥
नाहण धोयण काज सबे, पाणी गळी करु।
अणगळ नीर न जडीलीइए दातण मन मोडु॥
गढ़ि घाइ न मारीइए सवि चुपद जाणु।
कणसळ कण मन वणज करु, मन जिम वा आणु॥
पसूय गाढू नवि बांधीइए, नवि छेदि करीजि।
मानउ पहिरु लोभ करी, नवि भार करीजि॥
लहिणी देवि काज करी, लाघणि म करावुं।
च्यार हाथ जोईय भूमि, तम्हे जाउ आवु॥
फासु आहार जामिलु, मन आफणी रांधु।
अ गीठु मन तम्हे करु मन आयुध साधु॥
लाकड़ न विकयावीइए न्राह्याम चडावु।
सगा तणा वीवाह सही, म करु म करावु॥
लोह मधु विष लाख ढोर विवसी छाडवुं।
मिण महूजा कंद मूळ माखण मत वावु॥
कटोळ साबू पान घाहि धाणी नवि के जइ।
खटकसाळ हथीयार आगि, मांग्या नवि दीजि॥