कार्तिक मासे अभ्यो सुंदरी सेलोः सेलो ने अमो परवेश रे।

पियुं पर तो उतर्या अबला नो वारो वेश रे॥

माघ सरे मन माहें प्रभु संतो ने रेजु ठाम रे।

भर्या जोबन मई मेली गया केम जी वसी मोरा कंत रे॥

पोष मास नी प्रीतड़ी अमनी गणी दुबेली जाय रे।

जीम-जीम कृष्ण साभली मारी काया ते संदे तेज रे॥

मा मासे मन माय प्रभु शीतल बाजे अंध गणीं।

अणीं रीते कृष्ण घेरे आवी तारी वाट जोवे मे’मान रे॥

फागण वेलो फगुकियों उड़े-उड़े रे अबी-गुलाल रे।

जिम-जिम कृष्ण मने साँभले मारी काया ने कंकण लोल रे॥

सेतरी कोपे कांपणी मारे पोडी बुरू पान रे।

जिम-जिम कृष्ण मनी सांभले, मारा दन जिव्या अवतार रे॥

वैशाखे वन प्रति पालवी मोरी-मोंरी ते दानव दाख रे।

मन मीठा मोरा मोघरा फुली-फुली ते सर्वे मल साग रे॥

जेठ मास जल मलें भली-भली ते आवा डार रे।

भलि सहेलियों नी गोठणी भल भले ते पाक नार रे॥

आषाढे आव्यो ओनणी गाज-गाज ते घेर गंभीर रे।

पपैया पियु-पियु करे पेली कोयल करे कलोल रे॥

श्रावण वरस्यो सरवणें गंगा-जमना जी गई भरपूर रे।

रूपे ते ऊँढे राधिका जेने राखडि्यों सेत जई रे॥

भादरवो भरथार बिना मने घणों दुवेलों जाय रे।

दई दुजेणु घर अंत घणु कृष्ण बिना भुखि लिधु नव जाय रे॥

आसीरे मास मति आवियों रुढ़ा घेर-घेर जोसम थई रे।

अणि रति सवामी घरे आवी मा दन जिव्या अवतार रे॥

बार मास पूरा थया जारे आव्यो ते अधिक मास रे।

कृष्ण वरावी ने अमें बर्यूं जारी ऊँब सरोवन नी पार रे॥

पारे ते ऊँब सुंदरी जुई-जुई हरि नी वाट रे।

आँसुड़े भिजे कँसुओं मारे नयन तो खल्वयें नीर रे॥

बार महिने कृष्ण घेरे पधारया जारी उमा रे आँगण सायी रे।

आँगणे बाबु एलसी भाड़े दुडेले नागर वील रे॥

तेर महिने कृष्ण घेरे कृष्ण पधार्या नारद जी मारा वीर रे।

सवा-सवा लाख नीं मारी मोन रक्षा मारी बाही गई नव जाई रे॥

गाय, गवड़ा, सीझ साभले तेनो हजु ते वैकुंठ वास रे।

एक मारग जातु साँभले, तेनी गंगा तणों स्नान रे॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम