आरती करि आरती आतमा ऊजली।
रामजी पधार्या म्हारे , पूरवन रली॥
तेंतीस समाना ऊपरि चाढी।
चंवर ढुलावे इकपग ठाढी़॥
पंच सबद घंटा निरवाणी।
झालरि बाजै राम नाम बांणी॥
पांच तत्त्व को दीपक धार्यो।
जोति सरूपी ऊपरि वार्यो॥
दसवें द्वारी देव मुरारी।
सनमुख सुंदरि पूजणहारी॥
मन पंडो तिहि सेवा मांही।
'बखना' वारै आवे नाहीं॥