एक वरसना निष्कलंक जी हंसे, मेरू परवते गढ़ कोट रसासें।

मगरी ने नगरे नेसाण रोपासे, मंड़ली नी राणा मलसे मोटी।

दूजी धड़ा-धड़ पडसे ने खोटा मइ मई था मोटा भवभूत पड़से।

परजा नासी ने गढ़ परंवत सडसी, परवत गरी ने पाणी थसी।

पाणी रे मई थी लाय उपज से पाणी रे मइ थी-------॥

बीजा वरसना निकलंक जी ओसी, अण दीखी वात दृष्टा दृष्टि थसे

बरती आत नो पुष परमाण, नव लाख निजा नो नवलाख निशान

अनंत कुआरियां नु दल जुनि मेलांण ऐसी लाख मयें हेमण हणसी

चौदह लोक मई पाखण्डी पड़सी, असुरी आवी सामा-सामी मणसी

सोलह कला नी पूरूष परमाण सोलह कला नो-------॥

तीजे खड़क धड़-धड़सी धारा कालेंग, ऊपर होसे अलकर,

कर पिला परवत धोली पाणी रे पीसी, ते तो कालेंग सीस कटासे

दुष्टि दानव तो संगल कटासी, दाहित दानव संगल कटासी

चौथे सूर्या राणी चरणे तोलासी, सुख आनन्दी लील गवासी

एना हसे तेना गुण मासे, एना हसे-----------॥

सोलह श्रंगार पेरी बहु गुण गासे सुख आनन्दी लील गवासे

पांच बरसना सोम सो पीर, पोड्या नी जागी परवत पार।

सफ़ेद वस्त्र, सफ़ेद श्रंगार धोरे ने घोड़े घुघर माला,

राई निकलंगजी होसे असवार, खारं समुंद्र मीठड थासें।

समुद्र ते तीरे करसण ववासे, कलमी कोदारो करणी कमासी

बरदं ना सीर थकी भार उतरसे, बरदं ना--------॥

अन्न कमाई बहुतेरी बदसे, अण वरक फेरी फूल फुलासे,

हस्ती ना दुधे माट भरासे, ऊँटसारी वलण रे थासी,

बाघ सारी जोड़े बँधासे-------बाँध--------सोरी॥

राई निकलंग जी नी वरतासे आँण, राई निकलंग नीं

शतमुखी गंगा परगट थासे, शत मुद्रा थकी आने उतर से,

जनेउ माला जावर ला अपसी षट् दर्शन खोज खोजा से।

सेर नो पाणों रक्ते तणासी, सेर नो पाणों रक्तें ताणासी,

ओत्तम करिया तो मध्यम थासी, मध्यम करिया ओत्तम थासी,

पृथ्वी मई पांडव परघट थासी, एक थाल मई जमण जमासे।

वरणा रे वरणी ना सेसा मटसी, चरणा वरणा ना सोसा रे मटसे।

एकाकार होसे नीरवाणी-------एकाकार--------॥

जारें मेघवाल आवी मोरे, मंडासे हरी शरणे जइ शीश नमासे

जारें मेघवाल बसे बेणथली गाम तेनी कुंवारियां नु मेंदनी नाम

देश मई आल्य धरम उपदेश---------देश मई आल्य धरम-------॥

स्रोत
  • पोथी : संत मावजी ,
  • सिरजक : संत मावजी ,
  • संपादक : मथुराप्रसाद अग्रवाल एवं नवीनचन्द्र याज्ञिक ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम