आहे चैत्र तणी वदि नवमीय सुंदर वार अपार।

रवि जनमी तइ जनमीया करइ जय जयकार॥

आहे लगनादि कर् ‌यू वरणवू जेणइ जनम्या देव।

बाल पणइ जस सुरनर आव्या करवा सेव॥

आहे घंटा रव तब वाजीउ गाजीउ अम्बरि नाद।

जिनवर जनम सु सीधउ दीधउ सघळइ साद॥

आहे एरावण गज सज कर्यु सज कर्या वाहन सर्व।

निज निज घरि थका नीकळ्या कुणइ कीधउ गर्व॥

आहे नाभि नरेसर आगण नइ गगणंगण देश।

देवीय देवइ पूरीयु नहीय किहीय प्रवेश॥

आहे माहिमई इन्द्राणीय आणीय शप्पउ बाल।

इन्द्र तणइ करि सुन्दरी गावह गीत विशाल॥

आहे छत्र चमर करि धरता करता जय जयकार।

गिरिवर शिखिर पहूत बहूत लागीय वार॥

आहे दीठउ पडुक कानन वर पंचानन पीठ।

तिहा जिन थापीय आखळि पाखळि इन्द्र बईठ॥

आहे रतन जड़ित अति मोटाउ मोटाउ लीधउ कुम्भ।

क्षीर समुद्र थकूं पूरीय पूटीय आणीयू अम्भ॥

आहे कुम्भ अदम्भ पणइ लेई ढाल्या सहस नह आठ।

ककण करि रणझणतइ भणतइ जय जय पाठ॥

आहे दुमि दुमि तवळीय वज्जइ घुमि घुमि मद्दल नाद।

टणण टणण टंकारव झिणिझिणि झल्लर साद॥

आहे कोटइ मोटा मोतीयनु पहिराव्यु हार।

पहिरीया भूषण रंगि अंगि लगा रज भार॥

आहे करि पहिरावइ साकळी साकळी आपइ हाथि।

रीखतु रीखतु चालइ चालइ जननी साथि॥

आहे कटि कटि मेखळ वाघइ वाघइ अंगद एक।

कटक मुकट पहिरावइ जाणइ बहुत विवेक॥

आहे घ्रण घ्रण घूघरी बाजइ हेम तणी विहु पाइ।

तिमतिम नरपति हरखइ हरखइ मरुदेवी माइ॥

आहे वगनाउ वगनाउ मगनाउ लाडूआ मू कइ आणि।

थाळ भरी नइ गमताउ गमताउ लिइ निजपाणि॥

आहे क्षिणि जोवइ क्षिणि सोवइ रोवइ लहीअ लगार।

आलि करइ कर मोडइ त्रोडइ नवसर हार॥

आहे आपइ एक अकाळ रसाल तणी करि साख।

एक खवारइ खारिकि खरमाउ दाडि़म द्राख॥

आहे आगलि मू कइ एक अनेक अखोड़ बदाम।

लेईय आवइ ठाकर साकर नावहु ठाम॥

ओह अवर व्रतू सह छांडीय, मांडीय मरकीय लेवि।

आपइ थापइ आगळि रमति बहू मरुदेवि॥

आहे खाड मिळीय गळीय तळीय खवारइ सेव।

सरगि थका नित सेवाउ जोवाउ आवउ देव॥

खाड मिली हरखिइं तळी गळी खवारइ सेव।

कइ आवइ सेविवा केई जोवा देव॥

आहे आपइ एक अहीणीय फीणीथ झीणीय रेख।

अविय देवीय देव तणी देखाड़इ देख॥

आपइ फीणी मनिरळी मांहइ झीणी रेख।

देवी आवइ सरगिथी देखाउइ ते देख॥

आहे एक आणइ वर सोळाउ कोहला केरउ पाक।

अणिय आणीय बाधइं एक अनेक पताक॥

आहे आणइ साकर दूध विसूधउ दूध विपाक।

आपइ एक जणी घणी खाडतणी वर चाक॥

साकर दूध कचोलड़ी सूघउ दूध विपाक।

आपइ एक जणी घणी खाडतणी वर चाक॥

आहे कोमल कोमल कमल तणा फळ आपइ सार।

नहीय दहीय दहीयथरानउ धोक लगार॥

कमल तणा फळ टोपरा पस्ता आपइ सार।

दहीय दहीयथ रातणु वाक नहीय जगार॥

आहे वूरइ पूरइ पस तस खस खस आपइ एक।

उन्हऊ पाणीय आणीय गिकरइ नित सेक॥

आपइ वूरू खाडनूं खसखस आपइ एक।

चापेळ बडइ चोपड़ी आगि करइ जळ सेक॥

आहे कोठइ मोटा मोतीय मोतीय लाडू हाथि।

जोवाउ नित नित आवइ इन्द्र इन्द्राणी साथि॥

कोटइ मोती अति भला मोती लाडु हाथि।

जोवानइ आवइ वळी इन्द्र सची बहु साथि॥

आहे चारउ लीनी वाचकी साकची आपइ एक।

एक आपइ गुड़ बीजीय बीजीय फणस अनेक॥

आहे माथइ कूंचीय ढीलीय नीलीय आपइ द्राख।

नित नित लूंण ऊतारइ जे मन लागइ चाख॥

चार तणा फळ साकची सूका केळा एक।

पहूं आगुड़ बीजी घणी आपइ फनस अनेक॥

सिरि कूंची मोती भरी हाथिइ नीली द्राख।

लूण उतारइ माड़ली जे मन लागइ चाख॥

आहे मान तणीया साहेळड़ी सेलड़ी आपइ नारि।

छोलीय छोलीय आपइ बइठीय रहइ घर वारि॥

आहे जादरिया कांकरीया धरीया लाडूवा हाथि।

सेवईया मेवईया आपइ तिलवट साथि॥

सेव तणा आदिइं करी लाडू भूकइ हाथि।

आणइ गुळभेळा करी आपइ तिलवट साथि॥

आहे तीगण काईय आईय आणीय आपइ हाथि।

तेवड़ा तेवड़ा चालक जमला चालइ साथि॥

नाळिकेर नीला भला माडी आपइ हाथि।

जमला तेवड़ तेवड़ा बाळक चालइ साथि॥

आहे आपइ लीबुअ बीजाउ बीजउरा जबीर।

जोईय जोईय मूकइ जिनवर बावन वीर॥

आपइ लीबू अतिभला बीजुरा जवीर।

हाथि लेई जो अइ रयइ जिनवर बावन वीर॥

आहे साजाउ साजाउ करउे कीधउ चूर खजूर।

आपइ केईय जोअइ गाअइ वाअइ तूर॥

आपइ फळद खजूर शु केई खाजा चूर्।

केई गावइ गीतड़ा एक वजाउइ तूर॥

आहे श्रीयुत नित नित आवइ देव तणउ संधात।

अमिरिन आपइ आणीय क्षाणीयनी कुणवात॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : भट्टारक ज्ञानभूषण ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर