फूंगराई फूंफूंफार फारक फौज फरि फुरमाणियां।

हुंकार कर कड़ी करइ सर झड़ि करवि करि कम्मावियां।

फुक्कारि मीर मल्लिक मुफरद, मूंछ मरड़ी मच्छरइ।

संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

फुरफुरहि लंब अलंब अंबरि नेज निकर निरंतर।

भरभरहि भेरि भयंक भू कर भरळि भूरि भयंकरं।

दड़दड़ी दड़दड़ कारि दड़वड़ देसि दिसि दिसि दड़वड़इ।

संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

ढम ढमइ ढम ढम कर ढंकर ढोल ढोली जंगिया।

सुर करहि रण सरणाइ समुहरि सरस रसि समरंगिया।

कळकळहि काहल कोडि कलरवि कुमल कायर थरथरइ।

संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

तुक्खार तार ततार तेजी तरल तिक्ख तुरंगमा।

पक्खरिय पक्खर पवन पंखी पसरि पसरि निरुप्पमा।

असवार आसुर अंस असलीइ असणिअ असुहउ (ड) ईडरह।

संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

यवन-सैन्य में यवनाधापति की फहराती हुई बहुत सी ध्वजाएं और फुफकारती हुई आज्ञाएं प्रसारित हुई। जिनको सुनकर यवनवीर हुंकार करते हुए, हाथों में धनुष धारण करके बाण वर्षा करने लगे। कुछ यवन सरदार मूंछों पर ताव देते हुए अकेले ही मत्सरित होने लगे। इस प्रकार सुलतान की चतुर्विध चंचल सैन्य युध्दार्थ चली।

जब शक सुलतान की चतुर्विध चंचल सैन्य युध्दार्थ चली, तब उसमें आकाश के अन्दर छोटी-बड़ी पताकाओं का समूह लगातार फहर रहा था। भेरी की भर-भर करती हुई भयंकर ध्वनि और दुड़वड़ी की दड़ दड़ करती हुई ध्वनि देश की दसों दिशाओं में हो रही थी।

जब शक सुलतान की चतुर्विध चंचल सैन्य युध्दार्थ चली, तब उसके अंदर ढोली जंगी ढोलों को ढमाढम बजा रहे थे। और काहल की कर्कश ध्वनि तथा प्रत्यंचाओं की टंकारों से कोमल हृदय कायर थर्रा रहे थे।

जब शक सुलतान चतुर्विध चंचल सैन्य युध्दार्थ चली, तब उसमें तार देश के तुखार और तत्तार देश के तेजी नामक चंचल तथा तीक्ष्ण, कवचों से सुसज्जित एवं पवन के समान वेग वाले घोड़े थे। वे पक्षियों के समान फ़ैल रहे थे। उन पर ईडर के लिए अशुभकारी वज्रस्वरूप यवन सवार थे।

स्रोत
  • पोथी : रणमल्ल छंद ,
  • सिरजक : श्रीधर व्यास ,
  • संपादक : मूलचंद ‘प्राणेश’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
जुड़्योड़ा विसै