दोहा

अर्‌ज उचारूं आखरां, तर्‌ज न जाणूं ताळ।
गर्‌ज गुजारिश गीगला, मर्‌ज मेट ममताळ॥

पर्‌ज तोय परमेशरी, दर्‌ज अर्‌ज डाढाळ।
फर्‌ज निभाजै फेर सूं, हर्‌ज हरण हर हाल॥

छंद जात सारसी

सतरा ज सम्मत आव अजमत, बीठुओं वरदाय है।
घर जोग जनमत करत गम्मत, गीगला गुणवाय है।
कर खैर खंडी आप चंडी, ईहगों कुळ आविया।
इंदोख नगरी नाक जगरी, रास विधविध राचिया॥
जिय रास गीगल राचिया॥

तब मुगल कानां चुगल लागी, तुरत आयो ताव सूं।
अभिमान में फरमान कीनो, गाव हूं गिणवाव सूं।
सजसेन आलम होय जालम, पाप कालम पाविया।
इंदोख नगरी नाक जगरी, रास विधविध राचिया॥
जिय रास गीगल राचिया॥

परकंप हरणै जंप करणै, राज लजपत राखणी।
हडकंप सुण झट चंप कीनो, तुर्‌क द्रावण ताखणी।
कर धेन सगळी आप केहर, गगन गूंजी गाजिया।
इंदोख नगरी नाक जगरी, रास विधविध राचिया॥
जिय रास गीगल राचिया॥

खगझल्ल अड़ियल रूप खोड़ल, खल्ल दळणी खार सूं।
खळखल्ल करणीथल्ल खेले, हरख हियों हार सूं।
करनल्ल सैणी साथ क्रीड़ा, भोग मदरस भाविया।
इंदोख नगरी नाक जगरी, रास विधविध राचिया॥
जिय रास गीगल राचिया॥

गीगल्ल आखूं गल्ल गाढी, भल्ल निजरां भाळजे।
हर सल्ल काया माह माया, पांव छाया पाळजे।
कुलदीप कथ्थी रेय सथ्थी, शुद्ध मत्ती सौंपिया।
इंदोख नगरी नाक जगरी, रास विधविध राचिया॥
जिय रास गीगल राचिया॥

छप्पय

कर धर सर किरपाळ, अर वर दीजै ईसरी।
डर हरजै डाढाळ, बाई कदै न बीसरी।
जोगासदु अब जोय, मोय दशा मातेशरी।
अंब मिटा सब ओय, पात तणी परमेशरी।
कुलदीप तवै कमलासणी, सेवक करम सुधारजै।
रावळी शरण में राखणी, ध्यान भगती धरावजै॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां रचियोड़ी ,
  • सिरजक : सुआसेवक कुलदीप चारण
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