आ दिन दूणी अर रात चोगणी बेल बधै
है नीमगिलो री, म्हारै कोठै री मंडेर
बिन सींची-साधी बिना कोई रै कर्यां मेर
नितरी काढै है टूंक, नये पानकां लदै।
हूँ कई बार मन मैं सोचूं ओ अळसीड़ो
तो अणचायो ही बध्यो बगै है यूं अथाग
ई सागण जगां लगाया पण नीं सक्या लाग
म्हारा गुलाब रा बूंटा क्यूं, के है भीड़ो?
दीवळ है अठै, आपरी म्हे आ भी मानी
दीवळ री जिग्यां कोई भी बूंटो नी लागै
पण अबखाई आ क्यूं गुलाब रै ही सागै
है दीवळ जे तो नीमगिलो नै क्यूं खा नी?
बेनागा ओ सुवाल उठ्ठे अर बिलो-बिलो
जावै मन नै, अर वधी बगै है नीमगिलो।