म्हे थरप थरप'र अै नित रा नूंवा समाज

के करां कांई ठा, अर मेटां हा किसी खेद

म्हे आकळ-बाकळ तो भाजां हां बण्यां बैद

पण तो बीमारी लाधै है, ईलाज

म्हे करां संगठण एक जात रै लोगां रो

बांनै कर भेळा केवां, भाई मजबूत हुवो

कीं सूत करण ने नारो द्यां, कीं सूत हुवो

अर वो नारो ही घर हूज्या है रोगां रो

कीं ओर बधां तो फेर धरम री बात करां

माणस-माणस नै खाना-खानां बांट बांट

अर धरम-धरम कर, फेर मचा द्यां मारकाट

भेड्यावां नै, आदमखोरां ने मात करां

म्हे मिनखां-मिनखां भेद करां हां जिको आज

है महारोग, मिनखापत है ईरो इलाज।

स्रोत
  • पोथी : सौ सानेट ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • प्रकाशक : ग्राम मंच प्रकाशन
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