आभै माँई एक चील साथै लड़तो

एक तोतो जावै किर्र किर्र करतो बर-बर

कंवळो-सो पंछी आगै चील जबर

पण बिना प्राण री परवा झपट-झपट पड़तो।

क्यूं रै साथै लेवे है भचभेड़ी

सोचूं, ईंरी ओकात कांई है आगै

क्यूं जुद्ध करै है साखात मौत सागै

भोग बैठ क्यूं जावै नीं, हुग्गी जेहड़ी।

बावळो पंखेरू है बेकार विरोध करै

सबळै उपर, इतणो बी नी सोच सकै

चील एक झपटी रे मांय दबोच सकै

ईनै, जिणरो भाज-भाज प्रतिशोध करै।

माणस सूं थोड़ी अकल? सीख लेतो तोतो

तो ओर कई दिन जी लेतो रोतो-धोतो।

स्रोत
  • पोथी : सौ सानेट ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : ग्राम मंच प्रकाशन
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