मिनखां मैं सीधी अर साची बातां पै'ली

होया करती, बै कै'ता बींरो बो ही अरथ

निसरया् करतो, सब्दां रो कोई जाळ व्यरथ

नीं गूंथ्या करता, मनस्या जे होती मैली

तो पट्टाफोड़ कैया करता मुंडे सामी

लागे तो लागे बात कोई नै बुरी,

जिसी ही हूँ तो कह दी, सही बात मैं सरम किसी,

रो मनोभाव हो, कूड़ाकूड़ नेकनामी

री खातर बात लुकोया नीं करता, ओखो

जे हुवै कोई तो हुवो, सुणा देता साची-

साची, माड़ी नै मन मैं राख फकत आछी

अर ठकुरसुहाती कह'र नई देता धोखो।

बातां के करता माणस जियां बचन भरता

भासा पर मरता, सब्दां री पूजा करता।

स्रोत
  • पोथी : सौ सानेट ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • प्रकाशक : ग्राम मंच प्रकाशन
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