ओळी रै बीच-बीच बैठे तुक रो विधान
अर बधती रैवै रबड़-सी आगै-सूं-आगै
जे बात बिचारां रै सावळ सागै-सागै
तो बाकी छन्दां सूं ओ है जाबक असान।
जे बात हुवै निज री तो और घणी सावळ
क्यूंकै भावां रै लार भटकणो नई हुवै
कवि नै यूं ही बेबात, अटकणो नई हुवै
अर नंई खिंडाणी पड़े बावळै नै बावळ।
हां, बात हुवै छोटी-सी कोई हुवै बात
बा सरू हुवै इण मैं इण मैं ई हुवै खतम
ओ कवि रै सारू हुवै, बात मैं कितणो दम
राखै बो, अर बीं मैं है कितनी करामात।
बो जितणो रंग चढावैलो इण उपर निज
उतणो ई ओ तो हो जावैलो बींरो ईज।