साहितकार किसौ है, यूं ई तुकां भिड़ावै
है 'मोहन आलोक' अेक ई कविता कोनी
ईं री इसी आज तांई कै मुक्त कुहावै
छंद बंद सूं जिण में तुक रौ 'सिस्टम' हो नीं।
सरूआत में आप डांखळां सूं ई लेल्यौ
आगै चालौ तौ 'ग-गीत' सामणै आवै
बीं में भी भाई तुक्कां सूं खुल' र खेल्यौ
है ब्यूं रौ ब्यू, भावै थोड़ौ नयौ लखावै।
तीजौ के है 'चितमारौ दुख नै' री लाम्बी
कवितावां है, पण बौ रौ बौ सागी ठरकौ
अेकर लागै अतुकान्त है अै तौ, हां भई,
पण छेकड़ जाता बौ रौ बौ सागी जरकौ
है तुक रौ, औ लिखै सोरठा बैण-सगाई
इण जुग में, ईं रौ माथौ खराब है, कांई?