कई लोग देख्या जीवण मैं जाबक थोड़ी
सी ही अक्ल जिकां मैं, पण बा इसी भुनाई
बींनै चैक सरीखी, के देख'र चकराई
बड़ां-बड़ां री बुद्ध, देख'र तोड़ा-फोड़ी
बां लोगां री, बडा बडा नै आज नचावै
है बै, उणी अक्ल रे पाण आंगळ्यां ऊपर
निज री, अनै जतावै है ज्यूं बां सौ भू पर
दूजो अक्लमन्द ई कोई निगैई नीं आवै।
हमां-तमां सगळा जोवां हां वांरे कानी
ऊभा-ऊभा, अक्ल जिकां मैं बांस्या करती
पड़ी-पड़ी, पण तुच्छ मान'र कोनी बरती
बींनै, अर कर उमर बिता दी कानां-मानी।
रैया सोचता के ओ आछो अर ओ माड़ो
अर बां कम अकलां, म्हां ऊपर ढोयो भाड़ो।