इण उज्जड़ मैं म्हारै एक मिनख रै चालण
सूं तो एक पगडंडी-सी ही बणसी थोड़ी
और बात है, आप करो जे ईरो पालण
एक दिन आ ही सड़क बण सकै लाम्बी चौड़ी।
खुरड़ा-सा घींस्या है हूं तो अंधारे मैं
अनै डगळिया फोड़्या है कीं ऊंधा-सूंधा
इतणी ही ऊरमा 'दई' री दी म्हारै मैं
तो ही, साच कैवूं तो बस इतणा ई चूंघा
खुल्या म्हारा तो, आगे अबै आपरी मरजी
है, चालो तो चालो नीं छोडो छिटकाओ।
मेरी मान्या, पण थारो खुद रो जेकर जी
करै जणा, नीतर कूड़ी अंवळाई खावो
क्यूं, जाओ! सौ गैला है कवि ने पूगण रा
उत्तर रा, दिक्खण रा, पिच्छम रा, ऊगण रा।