गमले मैं लाग्योड़ै ई बूटै नै पाणी
रोज एक लोटो गेरूं पण उक्योड़ो-सो
खड़्यो रैवै ओ, रै आवै नहीं लवानी
'मरये न जीये' री हालत मैं सूक्योड़ो-सो
पड़्यो रैवै है, अर जे कोई टेम भूल सूं
नीं गेरूं जे ई रै मांय एक दिन पाणी
तो, तो स्यात नई लाधै ओ जड़ामूळ सूं
हाथ उधारै आलेड़े मैं आणी जाणी
इतणी ही हुवै, गमलै री माटी मिणियोड़ी
इतणी ही दे सकै पोख, इतणो ई जीवण
पण जे जड़ां धरा रै मां हुवै ठेठ गयोड़ी
तो बै अबखै टेम, बिना पाणी भी पोसण
करती रैवै, आपरै तळ री अमीं आल सूं
अर पौधो संघर्ष कर हुवै बा'र काळ सूं।